गीतगोविन्दम्
प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम् ।
विहितवहित्रचरित्रमखेदम् ॥
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥ १ ॥
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ॥
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे ॥ २ ॥
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलङ्ककलेव निमग्ना ॥
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥ ३ ॥
तव करकमलवरे नखमद्भुतशृङ्गम् ।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम् ॥
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ॥ ४ ॥
छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ॥
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे ॥ ५ ॥
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम् ।
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम् ॥
केशव धृतभृघुपतिरूप जय जगदीश हरे ॥ ६ ॥
वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम् ।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयं ॥
केशव धृतरामशरीर जय जगदीश हरे ॥ ७ ॥
वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम् ।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम् ॥
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ॥ ८ ॥
निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम् ।
सदयहृदयदर्शितपशुघातम् ॥
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ॥ ९ ॥
म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम् ।
धूमकेतुमिव किमपि करालम् ॥
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ॥ १० ॥
श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम् ।
शृणु सुखदं शुभदं भवसारम् ॥
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ॥ ११ ॥