Skip to content

Advocatetanmoy Law Library

Legal Database

United States Code

  • Title 1. General Provisions
  • Title 2. The Congress
  • Title 3. The President
  • Title 4. Flag and Seal, Seat of Government, and the States
  • Title 5. Government Organization and Employees
  • Title 6. Domestic Security
  • Title 7. Agriculture
  • Title 8. Aliens and Nationality
  • Title 9. Arbitration
  • Title 10. Armed Forces
  • Title 11. Bankruptcy
  • Title 12. Banks and Banking
  • Title 13. Census
  • Title 14. Coast Guard
  • Title 15. Commerce and Trade
  • Title 16. Conservation
  • Title 17. Copyrights
  • Title 18. Crimes and Criminal Procedure
  • Title 19. Customs Duties
  • Title 20. Education
  • Title 21. Food and Drugs
  • Title 22. Foreign Relations and Intercourse
  • Title 23. Highways
  • Title 24. Hospitals and Asylums
  • Title 25. Indians
  • Title 26. Internal Revenue Code
  • Title 27. Intoxicating Liquors
  • Title 28. Judiciary and Judicial Procedure
  • Title 29. Labor
  • Title 30. Mineral Lands and Mining
  • Title 31. Money and Finance
  • Title 32. National Guard
  • Title 33. Navigation and Navigable Waters
  • Title 35. Patents
  • Title 36. Patriotic and National Observances, Ceremonies, and Organizations
  • Title 37. Pay and Allowances of the Uniformed Services
  • Title 38. Veterans' Benefits
  • Title 39. Postal Service
  • Title 40. Public Buildings, Property, and Works
  • Title 41. Public Contracts
  • Title 42. The Public Health and Welfare
  • Title 43. Public Lands
  • Title 44. Public Printing and Documents
  • Title 45. Railroads
  • Title 46. Shipping
  • Title 47. Telecommunications
  • Title 48. Territories and Insular Possessions
  • Title 49. Transportation
  • Title 50. War and National Defense
  • Title 51. National and Commercial Space Programs
  • Title 52. Voting and Elections
  • Title 54. National Park Service and Related Programs

Read More

  • Home
    • About
  • UPDATES
  • Courts
  • Constitutions
  • Law Exam
  • Pleading
  • Indian Law
  • Notifications
  • Glossary
  • Account
  • Home
  • 2021
  • March
  • 3
  • अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा-राहुल संकृत्यायन
  • Hindi Page
  • Tourism

अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा-राहुल संकृत्यायन

आधुनिक काल में घुमक्कड़ों के काम की बात कहने की आवश्यकता है, क्योंकि लोगों ने घुमक्कड़ों की कृतियों को चुरा के उन्हें गला फाड़-फाड़कर अपने नाम से प्रकाशित किया, जिससे दुनिया जानने लगी कि वस्तुत: तेली के कोल्हू के बैल ही दुनिया में सब कुछ करते हैं। आधुनिक विज्ञान में चार्ल्स डारविन का स्थान बहुत ऊँचा है। उसने प्राणियों की उत्पत्ति और मानव-वंश के विकास पर ही अद्वितीय खोज नहीं की, बल्कि कहना चाहिए कि सभी विज्ञानों को डारविन के प्रकाश में दिशा बदलनी पड़ी। लेकिन, क्या डारविन अपने महान आविष्कारों को कर सकता था, यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता?
1 min read
Print Friendly, PDF & Email

अथातो घुमक्कड़  जिज्ञासा

राहुल संकृत्यायन

संस्कृत से ग्रंथ को शुरू करने के लिए पाठकों को रोष नहीं होना चाहिए। आखिर हम शास्त्र लिखने जा रहे हैं, फिर शास्त्र की परिपाटी को मानना ही पड़ेगा। शास्त्रों में जिज्ञासा ऐसी चीज के लिए होनी बतलायी गयी है, जो कि श्रेष्ठ तथा व्यक्ति और समाज के लिए परम हितकारी हो। व्यास ने अपने शास्त्र में ब्रह्म को सर्वश्रेष्ठ मानकर इसे जिज्ञासा का विषय बनाया। व्यास-शिष्य जैमिनी ने धर्म को श्रेष्ठ माना। पुराने ऋषियों से मतभेद रखना हमारे लिए पाप की वस्तु नहीं है, आखिर छ: शास्त्रों के रचयिता छ: आस्तिक ऋषियों में भी आधो ने ब्रह्म को धता बता दी है। मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। कहा जाता है, ब्रह्मा को सृष्टि करने के लिए न प्रत्यक्ष प्रमाण सहायक हो सकता है, न अनुमान ही।

हाँ, दुनिया के धारण की बात तो निश्चय ही न ब्रह्म के ऊपर है, न विष्णु और न शंकर ही के ऊपर। दुनिया दुख में हो चाहे सुख में, सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से। प्राकृतिक आदिम मनुष्य परम घुमक्कड़ था। खेती, बागवानी तथा घर-द्वार से मुक्त वह आकाश के पक्षियों की भांति पृथ्वी पर सदा विचरण करता था, जाड़े में यदि इस जगह था तो गर्मियों में वहाँ से दो सौ कोस दूर।

आधुनिक काल में घुमक्कड़ों के काम की बात कहने की आवश्यकता है, क्योंकि लोगों ने घुमक्कड़ों की कृतियों को चुरा के उन्हें गला फाड़-फाड़कर अपने नाम से प्रकाशित किया, जिससे दुनिया जानने लगी कि वस्तुत: तेली के कोल्हू के बैल ही दुनिया में सब कुछ करते हैं। आधुनिक विज्ञान में चार्ल्स डारविन का स्थान बहुत ऊँचा है। उसने प्राणियों की उत्पत्ति और मानव-वंश के विकास पर ही अद्वितीय खोज नहीं की, बल्कि कहना चाहिए कि सभी विज्ञानों को डारविन के प्रकाश में दिशा बदलनी पड़ी। लेकिन, क्या डारविन अपने महान आविष्कारों को कर सकता था, यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता?

मैं मानता हू, पुस्तकें भी कुछ-कुछ घुमक्कड़ी का रस प्रदान करती है, लेकिन जिस तरह फोटो देखकर आप हिमालय के देवदार के गहन बनों और श्वेत हिम-मुकुटित शिखरों के सौन्दर्य, उनके रूप, उनकी गंध का अनुभव नहीं कर सकते, उसी तरह यात्रा-कथाआें से आपको उस बून्द भेट नहीं हो सकती जो कि एक घुमक्कड़ को प्राप्त होती है। अधिक से अधिक यात्रा-पाठकों के लिए यही कहा जा सकता है कि दूसरे बातों की अपेक्षा उन्हें थोड़ा आलोक मिल जाता और साथ ही ऐसी प्रेरणा भी मिल सकती है जो स्थायी नहीं तो कुछ दिनों के लिए तो उन्हें घुमक्कड़ बना ही सकती है। घुमक्कड़ क्यों दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है? इसीलिए कि उसी ने आज की दुनिया को बनाया है। यदि आदिम पुरूष एक जगह नदी या तालाब के किनारे गर्म मुल्क में पडे रहते, तो वह दुनिया को आगे नहीं जा सकते थे।

आदमी की घुमक्कड़ी ने बहुत बार खून की नदियाँ बहायी है, इसमें संदेह नहीं, और घुमक्कड़ों से हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि वे खून के रास्ते को पकड़ें, किन्तु घुमक्कड़ों के काफले न आते जाते, तो सुस्त मानव जातियाँ सो जाती और पशु से ऊपर नहीं उठ पाती। आदिम घुमक्कड़ों में से आर्यों, शको, हूणों ने क्या-क्या किया, अपने खूनी पंथों द्वारा मानवता के पथ को किस तरह प्रशस्त किया, इसे इतिहास में हम उतना स्पष्ट वर्णित नहीं पाते, किन्तु मंगोल घुमक्कड़ों की करामातों को तो हम अच्छी तरह जानते हैं। बारूद, तोप, कागज, छापखाना, दिग्दर्शक चश्मा यहीं चीजें थीं, जिन्होंने पश्चिम में विज्ञान युग का आरम्भ कराया और इन चीजों को वहाँ ले जाने वाले मंगोल घुमक्कड़ थे।

कोलम्बस और वास्को डि गामा दो घुमक्कड़ ही थे, जिन्होंने पश्चिमी देशों के आगे बढ़ने का रास्ता खोला। अमेरिका अधिकतर निर्जन सा पड़ा था। एशिया के कूपमंडूक को घुमक्कड़ धर्म की महिमा भूल गयी, इसलिए उन्होंने अमेरिका पर अपनी झंडी नहीं गाड़ी। दो शताब्दियों पहले तक आस्ट्रेलिया खाली पड़ा था। चीन भारत को सभ्यता का बड़ा गर्व है, लेकिन इनको इतनी अक्ल नहीं आयी कि जाकर वहाँ अपना झंडा गाड़ आते। आज अपने ४०-५९ करोड़ की जनसंख्या के भार से भारत और चीन की भूमि दबी जा रही है, और आस्ट्रेलिया का द्वार बन्द है, लेकिन दो सदी पहले वह हमारे हाथ की चीज थी। क्यो भारत और चीन, आस्ट्रेलिया की अपार सम्पत्ति और अमित भूमि से वंचित रह गये? इसलिए कि घुमक्कड़ धर्म से विमुख थे, उसे भूल चुके थे।

हाँ, मैं इसे भूलना ही कहूंगा, क्योंकि किसी समय भारत और चीन ने बड़े-बड़े नामी घुमक्कड़ पैदा किये; वे भारतीय घुमक्कड़ ही थे, जिन्होंने दक्षिण पूरब में लंका, बर्मा, मलाया, यवदीप, स्याम, कम्बोज, चम्पा, बोर्नियो और सैलीबीज ही नहीं, फिलीपाइन तक धावा मारा था, और एक समय तो जान पड़ा कि न्यूजीलेण्ड और आस्ट्रेलिया भी बृहत्तर भारत के अंग बनने वाले है। लेकिन कूप-मंडूकता तेरा सत्यानाश हो। इस देश के बुद्धुओ ने उपदेश करना शुरू किया कि समुन्दर के खारे पानी और हिन्दू धर्म में बड़ा वैर है, उसे छूने मात्र से वह नमक की पुतली की तरह गल जायेगा। इतना बतला देने पर क्या कहने की आवश्यकता है कि समाज के कल्याण के लिए घुमक्कड़ धर्म कितनी आवश्यक चीज है? जिस जाति या देश ने इस धर्म को अपनाया, वह चारों फलों का भागी हुआ, और जिसने उसे दुराया, उसको नरक में भी ठिकाना नहीं। आखिर घुमक्कड़ धर्म को भूलने के कारण ही हम सात शताब्दियों तक धक्का खाते रहे, ऐरे-गैरे जो भी आये, हमें चार लात लगाते गये।

शायद किसी को संदेह हो मैंने इस शास्त्र में जो युक्तियाँ दी हैं, वे सभी तो लौकिक तथा शास्त्र-अग्राह्य हैं। अच्छा तो धर्म प्रमाण लीजिए। दुनिया के अधिकांश धर्मनायक घुमक्कड़ रहे। धर्माचार्यो में आचार-विचार, बुद्धि और तर्क तथा सहृदयता में सर्वश्रेष्ठ बुद्ध घुमक्कड़ राज थे। यद्यपि वह भारत से बाहर नहीं गये लेकिन वर्ष के तीन मासों को छोड़कर एक जगह रहना वह पाप समझते थे। वह अपने आप ही घुमक्कड़ नहीं थे, बल्कि आरंभ में ही अपने शिष्यों से उन्होंने कहा था – ‘चरथ भिक्खवे’ , ‘चरथ’ जिसका अर्थ है – ‘भिक्षुओ। घुमक्कड़ी करो!’ बुद्ध के भिक्षुआें ने अपने गुरू की शिक्षा को कितना माना, क्या इसे बताने की आवश्यकता है? क्या उन्होंने पश्चिम में मकदूबिया तथा मिस्र से पूरब में जापान तक, उत्तर में मंगोलिया से लेकर दक्षिण में बाली और बांका के द्वीपों तक रौंदकर रख नहीं दिया? जिस बृहत्तर भारत के लिए हरेक भारतीय को उचित अभिमान है, क्या उसका निर्माण इन्हीं घुमक्कड़ों का इतना जोर बुद्ध से एक-दो शताब्दियों पूर्व भी था, जिसके कारण ही बुद्ध जैसे घुमक्कड़ राज इस देश में पैदा हो सके। उस वक्त पस्र्ष ही नहीं स्त्रियाँ तक जम्बू-वृक्ष की शाखा ले, अपनी प्रखर प्रतिभा का जौहर दिखाती, बाद में कूप-मंडूकों को पराजित करती सारे भारत में मुक्त होकर विचरण करती थी।

कभी कभी महिलाएं पूछती है – क्या स्त्रियाँ भी घुमक्कड़ी कर सकती है, क्या उनको भी इस महाव्रत की दीक्षा लेनी चाहिए? इसके बारे में तो अलग अध्याय ही लिखा जाने वाला है, किन्तु यहाँ इतना कह देना है कि घुमक्कड़ धर्म ब्राह्मण-धर्म जैसा संकुचित धर्म नहीं है, जिसमें स्त्रियों के लिए स्थान न हो। स्त्रियाँ इसमें उतना ही अधिकार रखती है, जितना पुरूष। यदि वे जन्म सफल करके व्यक्ति और समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं, तो उन्हें भी दोनों हाथों इस धर्म को स्वीकार करना चाहिए। घुमक्कड़ी धर्म छुड़ाने के लिए ही पुरूष ने बहुत से बंधन नारी के रास्ते लगाये हैं। बुद्ध ने सिर्फ पुरूषों के लिए ही घुमक्कड़ी करने का आदेश नहीं दिया, बल्कि स्त्रियों के लिए भी उनका यही उपदेश था।

भारत के प्राचीन धर्मों में जैन धर्म भी है। जैन धर्म के प्रतिष्ठापक श्रवण महावीर कौन थे? वह भी घुमक्कड़-राज थे। घुमक्कड़ धर्म क आचरण में छोटी से बड़ी तक सभी बाधाआें और उपाधियों को उन्होंने त्याग दिया था – घर-द्वार और नारी-संतान ही नहीं, वस्त्र का भी वर्जन कर दिया था। “करतल शिक्षा, तरूतल वास” तथा दिगम्बर को उन्होंने इसलिए अपनाया था कि निर्द्वन्द्व विचरण में कोई बाधा न रहे। श्वेतांबर-बन्धु दिगम्बर कहने के लिए नाराज न हो। वस्तुत: हमारे वैज्ञानिक महान् घुमक्कड़ कुछ बातों में दिगम्बरों की कल्पना के अनुसार थे और कुछ बातों में श्वेताम्बरों के उल्लेख के अनुसार। लेकिन इसमें तो दोनों संप्रदायों और बाहर के मर्मज्ञ भी सहमत है कि भगवान महावीर दूसरी, तीसरी नहीं, प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ थे। वह आजीवन घूमते ही रहे। वैशाली में जन्म लेकर विचरण करते ही पावा में उन्होंने अपना शरीर छोड़ा। बुद्ध और महावीर से बढ़कर यदि कोई त्याग, तपस्या और सहृदयता का दावा करता है, तो मैं उसे केवल दम्भी कहँूगा।

आजकल कुटिया या आश्रम बनाकर तेली के बैल की तरह कोल्हू से बँधे कितने ही लोग अपने को अद्वितीय महात्मा कहते हैं या चेलों से कहलवाते हैं, लेकिन मैं तो कहूंगा , घुमक्कड़ी की बात से यह नहीं मान लेना होगा कि दूसरे लोग ईश्वर के भरोसे गुफा या कोठरी में बैठकर सारी सिद्धियाँ पा गये या पा जाते हैं। यदि ऐसा होता तो शंकराचार्य, जो साक्षात् ब्रह्मस्वरूप थे, क्यों भारत के चारों कोनों की खाक छानते फिरे? शंकर को शंकर किसी ब्रह्मा ने नहीं बनाया, उन्हें बड़ा बनाने वाला था यही घुमक्कड़ी धर्म। शंकर बराबर घूमते रहे – आज केरल देश में थे तो कुछ महीनों बाद मिथिला में और अगले साल काश्मिर या हिमालय के किसी दूसरे भाग में। शंकर तरूणाई में ही शिवलोक सिधार गये, किन्तु थोड़े से जीवन में उन्होंने सिर्फ तीमन भाष्य ही नहीं लिखे, बल्कि अपने आचरण से अनुयायियों को वह घुमक्कड़ी का पाठ पढ़ा गये कि आज भी उनके पालन करने वाले सैकड़ों मिलते हैं। वास्को डिगामा के भारत पहुंचने से बहुत पहले शंकर के शिष्य मास्को और यूरोप पहुंचे थे। उनके साहसी शिष्य सिर्फ भारत के चारों धामों से ही संतुष्ट नहीं थे बल्कि उनमें से कितनों ने जाकर बाकू (रूस) में धूनी रमाई। एक ने पर्यटन करते हुए वोल्गा तट पर निजी नोबोब्राद के महामेले को देखा।

रामानुज, माध्वाचार्य और वैष्णवाचार्यों के अनुयायी मुझे क्षमा करें, यदि मैं कहुँ कि उन्होंने भारत में कूप मंडूकता के प्रचार में बड़ी सरगर्मी दिखायी। भला हो रामानन्द और चैतन्य का, जिन्होंने कि पंक के पंकज बनकर आदिकाल से चले जाते महान घुमक्कड़ धर्म की फिर से प्रतिष्ठापना की, जिसके फलस्वरूप प्रथम श्रेणी के तो नहीं, किन्तु द्वितीय श्रेणी के बहुत से घुमक्कड़ उनमें पैदा हुए। ये बेचारे वाकू की बड़ी ज्वालामई तक कैसे आते उनके लिए तो मानसरोवर तक पहँुचना भी मुश्किल था। अपने हाथ से खाना बनाना, मांस अंडे से छू जाने पर भी धर्म का चला जाना, हाड़-तोड़ सर्दी के कारण हर लघुशंका से बाद बर्फीले पानी से हाथ धोना और हर महाशंका के बाद स्नान करना तो यमराज को निमंत्रण देना होता, इसलिए बेचारे फूंक-फूंककर ही घुमक्कडी कर सकते थे। इसमें किसे उज हो सकता है कि शैव हो या वैष्णव, वेदान्ती हो या सिद्धान्ती, सभी को आगे बढ़ाया केवल घुमक्कड़ धर्म ने।

महान घुमक्कड़ – धर्म बौद्धधर्म का भारत से लुप्त होना क्या था कि तब कूप मंडूकता का हमारे देश में बोलबाला हो गया। सात शताब्दियाँ बीत गयी और इन सातों शताब्दियों में दासता और परतंत्रता हमारे देश में पैर तोड़कर बैठ गयी। यह कोई आकस्मिक बात नहीं थीं, समाज अगुआें ने चाहे कितना ही कूप मंडूप बनाना चाहा, लेकिन इस देश में ऐसे माई के लाल जब तक पैदा होते रहे, जिन्होंने कर्म पथ की ओर संकेत किया। हमारे इतिहास में गरू नानक का समय दूर का नहीं है, लेकिन अपने समय के वह महान घुमक्कड़ थे। उन्होंने भारत-भ्रमण को ही पर्याप्त नहीं समझा, ईरान और अरब तक का धावा मारा, घुमक्कड़ी किसी बड़े योग से कम सिद्धिदायिनी नहीं हैं और निर्भीक तो वह एक नम्बर का बना देती है।

दूसरी शताब्दियों की बात छोड़िए, अभी शताब्दी भी नहीं बीती, इस देश से स्वामी दयानन्द को बिदा हुए। स्वामी दयानन्द को ऋषि दयानन्द किसने बनाया? घुमक्कड़ी धर्म ने। उन्होंने भारत के अधिक भागों का भ्रमण किया, पुस्तक लिखते, शास्त्रार्थ करते वह बराबर भ्रमण करते रहे। शास्त्रों को पढ़कर काशी के बड़े-बड़े पंडितों महामंडूक बनने में ही सफल होते रहे, इसलिए दयानन्द को सूक्तबुद्धि और तर्क प्रधान बनने का कारण शास्त्रों से अलग कहीं ढूंढ़ना होगा और वह है उनका निरन्तर घुमक्कड़ी धर्म का सेवन। उन्होंने समुद्र-यात्रा करने, द्वीप-द्वीपान्तरों में जाने के विरूद्ध जितनी थोथी दलीलें दी जाती थी, सबको चिंदी-चिंदी करके उड़ा दिया और बताया कि मनुष्य स्थावर वृक्ष नहीं है, वह जंगल प्राणी है। चलना मनुष्य का धर्म है जिसने इसे छोड़ा वह मनुष्य होने का नहीं।

बीसवीं शताब्दी के भारतीय घुमक्कड़ों की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं। इतना लिखने से मालूम हो गया होगा कि संसार में यदि अनादि सनातन धर्म है तो वह घुमक्कड़ धर्म है। लेकिन वह संकुचित सम्प्रदाय नहीं है, वह आकाश की तरह महान है, समुद्र की तरह विशाल है। जिन धर्मों ने अधिक यश और महिमा प्राप्त की है, केवल घुमक्कड़ धर्म ही के कारण। प्रभु ईसा घुमक्कड़ थे उनके अनुयायी भी ऐसे घुमक्कड़ थे, जिन्होंने ईसा के संदेश को दुनियाँ के कोने-कोने में पहँुचाया।

इतना कहने के बाद कोई संदेह नहीं रह गया कि घुमक्कड़ धर्म से बढ़कर दुनियाँ में धर्म नहीं है। धर्म की छोटी बात है, उसे घुमक्कड़ के साथ लगाना “महिमा घटी समुद्र की रावण बसा पड़ोस” वाली बात होगी। घुमक्कड़ होना आदमी के लिए परम सौभाग्य की बात है। यह पंथ अपने अनुयायी को मरने के बाद किसी काल्पनिक स्वर्ग का प्रलोभन नहीं देता, घुमक्कड़ी वह कर सकता है, जो निश्चिन्त है। किन साधनों से सम्पन्न होकर आदमी घुमक्कड़ बनने का अधिकारी हो सकता है, यह आगे बतलाया जायेगा। किन्तु घुमक्कड़ी के लिए चिन्ताहीन होना आवश्यक है, और चिन्ताहीन होने के लिए घुमक्कड़ी भी आवश्यक है। दोनों का आन्योन्यामय होना दूषण नहीं भूूषण है। घुमक्कड़ी से बढ़कर सुख कहाँ मिल सकता है आखिर चिन्ताहीन तो सुख का सबसे स्पष्ट रूप है। घुमक्कड़ों में कष्ट भी होते हैं लेकिन उसे उसी तरह समझिए, जैसे भोजन में मिर्च। मिर्च में यदि कड़वाहट न हो, तो क्या कोई मिर्च प्रेमी उसमें हाथ भी लगायेगा? वस्तुत: घुमक्कड़ी में कभी कभी होने वाले कड़वे अनुभव उसके रस को और बढ़ा देते हैं – उसी तरह जैसे काली पृष्ठभूमि में चित्र अधिक खिल उठता है।

व्यक्ति के लिए घुमक्कड़ी से बढ़कर कोई नगद धर्म नहीं है। जाति का भविष्य घुमक्कडी पर ही निर्भर करता है। इसलिए मैं कहूंगा कि हरेक तरूण और तरूणी को घुमक्कड़ी व्रत ग्रहण करना चाहिए इसके विरूद्ध दिये जाने वाले सारे प्रमाणों को झूठ और व्यर्थ का समझना चाहिए। यदि माता-पिता विरोध करते हैं तो समझना चाहिए कि यह भी प्रह्लाद के माता-पिता के नवीन संस्करण है। यदि हितू बान्धव बाधा उपस्थित करते हैं तो समझना चाहिए कि वे दिवांध है। यदि धर्माचार्य कुछ उल्टा-सीधा तर्क देते हैं तो समझ लेना चाहिए कि इन्हीं ढोंगियों ने संसार को कभी सरल और सच्चे पथ पर चलने नहीं दिया। यदि राज्य और राजसी नेता अपनी कानूनी रूकावटे डालते हैं तो हजारो बार के तजुर्बा की हुई बात है कि महानदी के वेग की तरह घुमक्कड़ की गति को रोकने वाला दुनियाँ में कोई पैदा नहीं हुआ। बड़े बड़े कठोर पहरेवाली राज्य सीमाआें को घुमक्कड़ों ने आँख में धूल झोंककर पार कर लिया। मैंने स्वयं एक से अधिक बार किया है। पहली तिब्बत यात्रा में अंग्रेजों, नेपाल राज्य और तिब्बत के सीमा रक्षकों की आँख में धूल झोंक कर जाना पड़ा था।

संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि यदि कोई तरूणी-तरूण घुमक्कड़ धर्म की दीक्षा लेता है – यह मैं अवश्य कहूंगा कि यह दीक्षा वही ले सकता है जिसमें बहुत भारी मात्रा में हर तरह का साहस है – तो उसे किसी की बात नहीं सुननी चाहिए, न माता के आँसू बहने की परवाह करनी चाहिए न पिता के भय और उदासी होने की, न भूल से विवाह कर लायी अपनी पत्नी के रोने-धोने की और न किसी तरूणी को अभागे पति के कलपने की। बस शंकराचार्य के शब्दों में यही समझना चाहिए –

“निस्त्रैगुण्यै पथ विचारत: को विधि: को निषेध:”

और मेरे गुरू कपोतराज के वचन को अपना पथ प्रदर्शक बनाना चाहिए।

“सैर कर दुनियाँ की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ?
जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ”

                             – इस्माइल मेरठी

दुनियाँ में मनुष्य जन्म एक ही बार होता है और जवानी भी केवल एक ही बार आती है। साहसी मनस्वी तरूण-तरूणियों को इस अवसर से हाथ नहीं धोना चाहिए। कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ों! संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।


Rahul Sankrityayan (9 April 1893 – 14 April 1963)

Related

Tags: HINDI HindiEssay Travel

Continue Reading

Previous: हिन्दी भाषा की उत्पत्ति-महावीरप्रसाद द्विवेदी-1907
Next: Hindi as Official language in UNO

Indian Supreme Court Digest

  • Unexplained inordinate delay must be taken into consideration as a very crucial factor and ground for quashing a criminal complaint (SC-18/05/2023)
  • For passing order u/s 319 CrPC, ‘satisfaction’ as mentioned in para no106 of Hardeep Singh case is sufficient (SC-2/06/2023)
  • ISKCON leaders, engage themselves into frivolous litigations and use court proceedings as a platform to settle their personal scores-(SC-18/05/2023)
  • High Court would not interfere by a Revision against a decree or order u/s 6 of SRA if there is no exceptional case (SC-2/4/2004)
  • Borrower may file a counterclaim either before DRT in a proceeding filed by Bank under RDB Act or a Civil Suit under CPC-SC (10/11/2022)

Write A Guest Post

Current Posts

Unexplained inordinate delay must be taken into consideration as a very crucial factor and ground for quashing a criminal complaint (SC-18/05/2023)
15 min read
  • Criminal Procedure Code 1973

Unexplained inordinate delay must be taken into consideration as a very crucial factor and ground for quashing a criminal complaint (SC-18/05/2023)

For passing order u/s 319 CrPC, ‘satisfaction’ as mentioned in para no106 of Hardeep Singh case is sufficient (SC-2/06/2023)
8 min read
  • Criminal Procedure Code 1973

For passing order u/s 319 CrPC, ‘satisfaction’ as mentioned in para no106 of Hardeep Singh case is sufficient (SC-2/06/2023)

Ghanshyam Vs Yogendra Rathi (02/06/2023)
8 min read
  • Supreme Court Judgments

Ghanshyam Vs Yogendra Rathi (02/06/2023)

Indian Lok Sabha Debates on The Railways Budget 2014-15 (10/06/2014)
198 min read
  • Indian Parliament

Indian Lok Sabha Debates on The Railways Budget 2014-15 (10/06/2014)

  • DATABASE
  • INDEX
  • JUDGMENTS
  • CONTACT US
  • DISCLAIMERS
  • RSS
  • PRIVACY
  • ACCOUNT
Copyright by Advocatetanmoy.